आदमी और पेड़ के बारे में

डगाल के ऊपरी सूखते पत्ते तक
पहुँचती हुई नमी के बारे में लिखो
लिखो, उस रक्त के बारे में
जो जीवनदायिनी बूंदों की तरह
हमारी धमनियों में पहुँचता है

कोई अंतर नहीं है
इस रक्त या उस पानी में
जिसे नाहक बहाया है हमने
गवाह हैं
बड़े-बड़े महायुद्ध
रक्त उनका अपना नहीं था
इसलिए वे उसे बहा जाया कर सकते थे
मामूली सी अपनी जीत के लिए
इसे परे रख फिर तुम सोचोगे
और कुल्हाडी भी होगी तुम्हारे हाथों में
कांप जायेंगे तुम्हारे हाथ
एक ठंडापन उतर आएगा शिराओं में
तुम्हें लगेगा
कोई फर्क नहीं है
आदमी और पेड़ में
सिवाय इसके पेड़ खड़ा रहता है एक जगह
आदमी सहरा की ख़ाक छानता है दरबदर

इस महीन सी चुप में
आदमी हो या पेड़
दोनों ही निहत्थे हैं
और तुम अपने होने के गुमान में
दोनों को उजाड़ते जा रहे हो!
तुम जो सर्वेसर्वा हो
कानून की किताबों पर सर रख
अदालतों के बरामदों में
सच को दफनाते हुए
सरेआम हत्या कर रहे हो न्याय की
और तुमसे थोड़ी दूर पर
किसी पेड़ की छांह में बैठा
अपना कलेवा निपटा सुस्ता रहा है वह
न्याय की तलाश में जो दूरदराज से आया था

पेड़, पेड़ और आदमी, आदमी है
ज़रूरी नहीं कि इतनी बड़ी दुनिया में
दोनों ही सुरक्षित रहें
कहीं कुछ भी हो सकता है कभी भी
आदमी हो या पेड़
कभी भी उखाड़कर फेंके जा सकते हैं
अपनी जड़ों से दूर.

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